हर्षवर्द्धन : Harshvardhan History In Hindi & Gk Questions

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Harshvardhan History GK In Hindi

  • गुप्‍त साम्राज्‍य के पतन के बाद थानेश्‍वर में पुष्‍यभूति ने एक नये राजवंश की नींव डाली, जिसे पुष्‍य भूति वंश कहा जाता है।
  • इस वंश का प्रथम महत्‍वपूर्ण शासक प्रभाकर वर्द्धन था।
  • प्रभाकर वर्द्धन ने परमभट्टापरक या महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
  • प्रभाकर वर्द्धन के दो पुत्र राज्‍यवर्द्धन तथा हर्षवर्द्धन तथा एक पुत्री राज्‍य श्री थी।
  • प्रभाकर वर्द्धन की मृत्‍यु के बाद राज्‍यवर्द्धन थानेश्‍वर का शासक बना लेकिन अल्‍पकाल में ही गौड़ के शासक शशांक ने उसकी हत्‍या कर दी।
  • राज्‍यवर्द्धन के बाद लगभग 606 ई० में 16 वर्ष की आयु में हर्षवर्द्धन थानेश्‍वर का शासक बना।
  • हर्षवर्द्धन स्‍वयं एक बड़ा , विद्वान , लेखक, नाट्यकार तथा कवि था। उसने प्रियदर्शिका, रत्‍नावली और नागान्‍द नामक तीनर नाटक लिखे थे।
  • बाणभट्ट हर्षवर्द्धन का राजकवि था, उसने हर्षचरित, कादम्‍बरी तथा पार्वती- परिणय नामक ग्रन्‍थों की रचना की।
  • राजा बनते ही हर्षवर्द्धन ने अपने भाई के हत्‍यारों को सजा दी तथा अपनी बहन राज्‍यश्री को शशांक के कैद से मुक्‍त कराया।
  • हर्षवर्द्धन ने शशांक से युद्ध किया और पराजित कर कनौज पर अधिकार कर लिया।
  • आरम्‍भ में हर्षवर्द्धन की राजधानी थानेश्‍वर थी, बाद में उसने कनौज को अपना राजधानी बनाया।
  • हर्षवर्द्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत की यात्रा की थी।
  • ह्वेनसांग की यात्री सम्राट एवं नीति का सम्राट कहा गया है।
  • ह्वेनसांग भारत में नालंदा विश्‍वविद्यालय में पढ़ने तथा बौद्ध ग्रन्‍थ संग्रह करने के उद्देश्‍य से आया था।
  • बिहार राज्‍य में नव-नालंदा महाविहार में एक ह्वेनसांग स्‍मारक स्‍थापित किया गया है।
  • हर्षवर्द्धन का एक अन्‍य नाम शिलादित्‍य था।
  • हर्षवर्द्धन के दरबार में बाणभट्ट, मयूर, हरदित्‍त एवं जयसेन जैसे प्रसिद्ध कवि एवं लेखक थे।
  • हर्षवर्द्धन महान धार्मिक व्‍यक्ति था एवं बौद्ध धर्म की महायान शाखा के साथ-साथ विष्‍णु एवं शिव की भी स्‍तुति करता था।
  • वह प्रतिदिन 500 ब्राह्मणों एवं 1000 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराता था।
  • हर्ष ने 643 ई० में कनौज तथा प्रयाग में दो विशाल धार्मिक सभाओं का अयोजन किया था।
  • प्रयाग में आयोजित सभा को मोक्ष-परिषद् कहा जाता है।
  • हर्षवर्द्धन ने कश्‍मीर के शासक से बुद्ध के दंत-अवशेष बलपूर्वक प्राप्‍त किए।
  • हर्षवर्द्धन को दक्षिण भारत के शासक पुलकेशिन द्वितीय (चालुक्‍य वंश) ने ताप्‍ती नदी के किनारे 630 ई० में पराजित किया।
  • हर्षवर्द्धन के शासन प्रबन्‍ध में राजा का सर्वोच्‍च स्‍थान था।
  • राजा को परम भट्ठारक, परमेश्‍वर, परम देवता, महाराजाधिराज आदि की उपाधियाँ प्राप्‍त थी।
  • हर्ष का साम्राज्‍य शासन की सुविधा के लिए इकाईयों में बँटा हुआ था।
  • सारे साम्रज्‍य की भूमि को राज्‍य, राष्‍ट्र अथवा मण्‍डल कहते थे।
  • वह कई प्रान्‍तों में बँटा था, जिनकों भुक्ति अथवा प्रदेश कहते थे।
  • प्रान्‍तों के अधिकारी उपरिक, महाराज, गोप्‍ता, भोगपति, राष्‍ट्रपति कहलाते थे।
  • साधारण सैनिकों को चाट एवं भाट, अश्‍व सेनाके अधिकारियों को वृहदेश्‍वर, पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत कहा जाता था।
  • हर्षकाल के राजस्‍व-स्‍त्रोत के संदर्भ में तीन प्रकार के करों का उल्‍लेख मिलता है।
  • ‘भाग’ एक भूमिकर था जो कुल उपज का 1/6 हिस्‍सा वसूला जाता था।
  • ‘हिरण्‍य’ नकद के रूप में वसूला जाने वाला कर था।
  • बलि एक प्रकार का उपहार कर था।
  • हर्षवर्द्धन के शासनकाल में मथुरा सूती वस्‍त्रों के उत्‍पादन का एक प्रमुख केन्‍द्र था।
  • ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष की सेना में करीब 500 हाथी, 2000 घुड़सवार एवं 5 हजार पैदल सैनिक थे।
  • हर्षवर्द्धन की मृत्‍यु 647 ई० में हुई।

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